सिक्किम की नदियाँ खतरे में!

तेस्ता-III परियोजना पर वैज्ञानिक पुनर्मूल्यांकन और लोकतांत्रिक निर्णय की माँग

जब भी उत्तर-पूर्वी भारत की बात होती है, तो अक्सर उसकी अनदेखी कर दी जाती है। यहाँ की समस्याएँ, यहाँ की आवाज़ें देश के मुख्यधारा विमर्श में शामिल नहीं हो पातीं। लेकिन सिक्किम की नदियों और ग्लेशियरों से जुड़ा यह मुद्दा सिर्फ़ राज्य तक सीमित नहीं है—यह पूरे देश की चिंता का विषय है।

‘Concerned Citizens of Sikkim, India and Beyond’ और प्रवा राय के नेतृत्व में एक याचिका केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव और सिक्किम के मुख्यमंत्री श्री पी.एस. गोलय तामांग को सौंपी गई है। इस याचिका में वैज्ञानिक अध्ययन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बिना तेस्ता-III जलविद्युत परियोजना को दोबारा शुरू करने के निर्णय का कड़ा विरोध किया गया है।

तेस्ता नदी और सिक्किम का पारिस्थितिकी तंत्र

Teesta River एक अनोखी ग्लेशियर-निर्मित नदी है जो सिक्किम के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इलाकों से होकर बहती है। यहाँ लगातार बनाए जा रहे बाँधों ने स्थानीय समुदायों, विशेष रूप से ड्ज़ोंगू के लेपचा समुदाय, में गहरी चिंता और असंतोष उत्पन्न किया है। वैज्ञानिक वर्षों से हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर झीलों के पास बड़े जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर चेतावनी देते रहे हैं। इनका कहना है कि यदि ग्लेशियर पिघलने से अचानक बाढ़ आती है (Glacial Lake Outburst Flood – GLOF), तो दूर-दराज के इलाकों तक भारी तबाही मच सकती है।

3 अक्टूबर 2023 की विनाशकारी बाढ़: चेतावनी की अनदेखी

सिक्किम की साउथ ल्होनाक झील जो तेस्ता नदी (Teesta River) को जल प्रदान करती है, सबसे खतरनाक और तेज़ी से फैलती झीलों में से एक मानी जाती है। वैज्ञानिकों ने पहले ही आगाह किया था कि अगर यह झील फटी, तो सिक्किम का नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समाज गहरे संकट में आ जाएगा। ठीक ऐसा ही 3 अक्टूबर 2023 को हुआ—झील की दीवारें टूट गईं और 50 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी एक विशाल लहर के रूप में बाहर आ गया। इस जलप्रलय ने 270 मिलियन क्यूबिक मीटर गाद बहाकर पूरे इलाके में तबाही मचा दी। इसमें न सिर्फ़ सिक्किम के कई हिस्से तबाह हुए, बल्कि 1200 मेगावाट की तेस्ता-III जलविद्युत परियोजना पूरी तरह बर्बाद हो गई। कई लोगों की जान गई, कई लोग लापता हो गए और अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ।

जनवरी 2025: फिर वही गलती?

इतनी भीषण तबाही के बावजूद, इस साल जनवरी में केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति (EAC) ने बिना किसी नए पर्यावरणीय आकलन, बिना सार्वजनिक सुनवाई, और बिना किसी वैज्ञानिक समीक्षा के, तेस्ता-III परियोजना को दोबारा शुरू करने की अनुमति दे दी। पर्यावरणविदों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह निर्णय न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि सिक्किम और उससे जुड़े पर्यावरणीय और सामाजिक तंत्र के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

क्या कहते हैं विरोध करने वाले?

  • परियोजना को बिना वैज्ञानिक पुनर्मूल्यांकन और बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मंज़ूरी दी गई।
  • सरकार ने पिछली आपदा से कोई सबक नहीं लिया और फिर से जनता की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया।
  • यह सिक्किम की नदियों और पहाड़ों को अनदेखा करने की एक और मिसाल है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्लेशियर संरक्षण की माँग

संयुक्त राष्ट्र के तहत विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और यूनेस्को ने 2025 को ‘अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष’ घोषित किया है। इसके बावजूद, भारत में जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के बढ़ते संकट को अनदेखा किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर यही रुख रहा, तो आने वाले समय में न सिर्फ़ हमारी नदियाँ सूखेंगी, बल्कि पीने का पानी, कृषि और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

याचिकाकर्ताओं की माँग

याचिका में मांग की गई है कि:

  1. तेस्ता-III परियोजना को तुरंत रोका जाए।
  2. सिक्किम के पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली सभी परियोजनाओं की समीक्षा की जाए।
  3. स्थानीय समुदायों की सहमति से ही कोई भी नया निर्णय लिया जाए।
  4. वैज्ञानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन हो।

क्या आप कुछ कर सकते हैं?

अगर आप भी इस आंदोलन का समर्थन करना चाहते हैं, तो इस याचिका पर हस्ताक्षर करें:
https://www.change.org/p/save-our-rivers-the-sikkim-petition

उत्तर-पूर्वी भारत को नज़रअंदाज़ करना हमें बहुत भारी पड़ सकता है। यह सिर्फ़ सिक्किम की नदियों की नहीं, बल्कि हमारे पूरे देश की पारिस्थितिकी और भविष्य की लड़ाई है।

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