संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के अस्तित्व पर आ रहे संकट के खिलाफ संचालकों ने की आकस्मिक बैठक

प्रबंधकों ने कहा; जबरदस्ती थोपी जा रही प्रशासन योजना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं

  • कतिपय अधिकारियों द्वारा विद्यालय-महाविद्यालयों को कई दशकों से मिल रहे नॉन प्लान वेतन आदि अनुदान को बन्द करने की नियम विरूद्ध बात से भड़के सभी प्रबंधक
  • कहा ऐसा कोई आदेश आया तो सरकार के खिलाप सड़कों पर उतरेंगे
  • संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय हमारी आत्मा है हमारे धरोहर है: प्रबंधक

हरिद्वार: आज निर्धन निकेतन हरिद्वार में प्रदेश के संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के प्रबंधकों, संस्थापक व संचालकों की आकस्मिक बैठक आहूत की गई. बैठक की अध्यक्षता निर्धन निकेतन संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक ऋषि राम कृष्ण महाराज ने की। हाल ही में शासन प्रशासन से लगातार निर्गत हो रहे आदेश में संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के वर्गीकरण से सभी प्रबंधकों में रोषव्याप्त है, जिससे सभी प्रबंध संचालक नाराज चल रहे हैं.

बैठक में सभी ने एक स्वर में तय किया कि शासन द्वारा जबरन संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय में जारी प्रशासन योजना हम किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. गरीबदास की संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक ने कहा कि हमारे संस्कृत महाविद्यालय पिछले 100 साल से चल रहे हैं जिनका एक अपना संविधान है. उन्होंने कहा कि बायोलॉज है कि जो 1860 सोसाइटी एक्ट में पंजीकृत है. विभाग को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि वहां अलग से एक और प्रशासन योजना हमारे ऊपर थोप रहे हैं.

बैठक में उन्होंने कहा कि जिस संविधान से यह संस्थाएं चल रही है उसमें अगर किसी प्रकार की कमी है तो उसी में क्यों नहीं सुधार किया जाता, अतिरिक्त बोझ जबरदस्ती संस्थाओं के ऊपर डालना विधि संवत और न्याय उचित नहीं है. वहीं चेतन ज्योति संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक स्वामी ऋषिस्वरानंद महाराज ने कहा कि हम वर्गीकरण के खिलाफ नहीं है. वर्गीकरण होना चाहिए महाविद्यालय और माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार का वर्गीकरण होना चाहिए.

2021 के आदेश में विभाग ने जिन 31 महाविद्यालयों को महाविद्यालय के रूप में मानकानुसार अर्ह पाया है वह महाविद्यालय 2021 के बाद पृथक रूप से महाविद्यालय संचालित हो रहे हैं और आज पुनः 3 वर्ष बाद उनको माध्यमिक कक्षाएं चलाने के लिए बाध्य किया जा रहा है. यह कैसे संभव होगा?  इतना ही नहीं जिन विद्यालयों को वर्ष 2008 और 2010 में विभाग द्वारा निर्गत शासनादेशों के क्रम में इंटरमीडिएट स्तर तक की वित्तीय सहमति प्रदान की गई थी और उसके क्रम में कई विद्यालयों में 7600 के ग्रेड यानी इंटरमीडिएट स्तर के प्रधानाचार्य नियुक्त भी हुए हैं जिनमे कुछ सेवारत है और कुछ सेवानिवृत भी हो गए हैं। आज उन विद्यालयों को पुनः जूनियर स्तर का विद्यालय बना दिया गया है. क्या यह नियम विरुद्ध नहीं है? इसको कैसे स्वीकार जा सकता है.

ऋषि राम कृष्ण महाराज ने कहा कि विभाग संस्थाओं को उन्नत करने की बजाय अवनत कर रहा है, जो बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है. वर्गीकृत महाविद्यालयों में जो स्थायी शिक्षक उच्चशिक्षा के मानकों पर स्थायी रूप से सेवारत है उनको उच्चशिक्षा का सेवालाभ देने की बजाय उनको नियम विरुद्ध इंटरमीडिएट का शिक्षक बताया जा रहा है। गुरुरामराय संस्कृत महाविद्यालय देहरादून के अध्यक्ष चंद्र मोहन सिंह पयाल ने कहा कि जिन महाविद्यालयों में 1981 से प्रोफेसर/सहायक प्रोफेसर के पद सृजित एवम अनुदानित है वह महाविद्यालय विद्यालय कैसे हो सकते हैं. सरकार अपने ही पूर्व आदेशों का बिना अध्ययन किये जो मन में आ रहा है आदेश निर्गत कर रही है.

ऐसा प्रतीत होता है कि निदेशालय स्तर पर बैठे अधिकारी शासन को गलत सूचना का प्रेषण कर रहे हैं, जिस कारण इस प्रकार के आदेश निर्गत हो रहे हैं। सभी प्रबंधकों ने एक स्वर में कहा कि विभाग अपने आदेशों मे तत्काल संशोधन करें जो महाविद्यालय स्वतंत्र रूप से केवल महाविद्यालय स्तर पर संचालित हो रहे हैं उनके लिए पृथक आदेश जारी हो, उनमें माध्यमिक कक्षाओं को चलाने की बाध्यता ना हो। शेष जो विद्यालय वर्षों से इंटरमीडिएट स्तर तक चल रहे हैं उन सभी विद्यालयों को इंटरमीडिएट स्तर तक की वित्तीय स्वीकृति प्रदान हो, जिन विद्यालयों को जूनियर हाईस्कूल दिखाया गया है उनको इंटरमीडिएट स्तर का वित्तीय स्तर प्रदान हो, और प्रशासन योजना में प्रबंधकों के अनुसार आवश्यक सुधार किए जाएं तभी प्रशासन योजना स्वीकार स्वीकार होगी. अन्यथा प्रशासन योजना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं होगी।

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