बॉन सम्मेलन की तैयारी: जलवायु संकट, फाइनेंस और फॉसिल फ्यूल पर दुनिया की नज़र 

आलेख। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की मध्य वर्ष की बैठक (UNFCCC Bonn Climate Conference) सोमवार आज से शुरू हो रही है। 26 जून तक चलने वाली ये बातचीत इस वक्त हो रही है जब हाल ही में मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने चेतावनी दी कि 2029 से पहले 1.5°C तापमान सीमा के टूटने की 87% संभावना है। इसके साथ ही बीमा कंपनियों ने बताया कि 2024 में अब तक जलवायु से जुड़ी आपदाओं से करीब 320 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है।

इस बार सम्मेलन में जो मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहेंगे, वो हैं – फॉसिल फ्यूल से बाहर निकलने की रणनीति, विकासशील देशों के लिए जलवायु फाइनेंस, और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण (Just Transition) पर एक ठोस फ्रेमवर्क बनाना।

ब्राजील की COP30 प्राथमिकताएं – “FFF” पर फोकस

ब्राजील, जो अगले साल COP30 की मेज़बानी करेगा, पहले ही साफ कर चुका है कि उसकी तीन प्रमुख प्राथमिकताएं होंगी –
Forests (जंगलों का संरक्षण), Finance (वित्तीय मदद), और Fossils (फॉसिल फ्यूल से बाहर निकलना)।
ब्राजील के राष्ट्रपति के जलवायु सलाहकार आंद्रे कोरेया डो लागो ने तीन पत्रों के ज़रिए यह संकेत दिया है कि वे इस दिशा में बोन सम्मेलन में ठोस प्रगति चाहते हैं।

लेकिन सिर्फ इरादा नहीं, एक्शन चाहिए

ब्राजील ने “Action Agenda” का प्रस्ताव रखा है लेकिन अब दुनिया को उस एजेंडे की असली तस्वीर जाननी है। नागरिक समाज और निजी कंपनियां तैयार हैं, लेकिन अगर साझा दिशा तय नहीं हुई, तो सब मिलकर भी कोई ठोस परिणाम नहीं दे पाएंगे।

NDCs की सुस्ती – EU, चीन और भारत की भूमिका अहम

इस साल जिन देशों को अपनी नई जलवायु योजनाएं (NDCs) जमा करनी हैं, उनमें से अब तक सिर्फ 22 देशों ने ऐसा किया है। इन 22 में भी सिर्फ यूके की योजना पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य के अनुरूप मानी गई है।
यूरोपीय संघ और चीन की योजनाएं अभी तक सामने नहीं आईं। भारत ने भले ही 2030 तक 500 GW नॉन-फॉसिल एनर्जी का लक्ष्य रखा हो (जिसमें से 200 GW पहले ही हासिल हो चुका है), लेकिन 2035 के लिए नया प्लान अभी बाकी है।

जलवायु राजनीति की विशेषज्ञ कैथरीन अब्रू कहती हैं, “भारत में फाइनेंस सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत, चीन और EU के फैसले अगले दशक की दिशा तय करेंगे।”

फाइनेंस: बात नहीं अब रोडमैप चाहिए

COP29 में जलवायु फाइनेंस को $300 अरब प्रतिवर्ष तक बढ़ाने की बात हुई थी, लेकिन अब असली सवाल है कि पैसा आएगा कहां से और कैसे पहुंचेगा।
बॉन में “बाकू से बेलेम” रोडमैप पर चर्चा होगी – जिसमें ये तय किया जाएगा कि विकसित देश कितना और किस तरह का फंड देंगे। ACT Alliance के जूलियस मबाटिया कहते हैं, “विकासशील देश अपने संसाधनों से एक ऐसी समस्या का हल ढूंढ रहे हैं, जो उन्होंने पैदा ही नहीं की। अब समय है कि अमीर देश अपनी जेब से हिस्सा दें – और वो भी कर्ज़ नहीं, अनुदान के रूप में।”

एडाप्टेशन पर ध्यान और नए संकेतक

इस बार बोन में Global Goal on Adaptation (GGA) पर भी फोकस रहेगा। अभी 490 संकेतक तय किए गए हैं जिनसे जलवायु अनुकूलन की प्रगति को मापा जा सकेगा – अब इनकी संख्या घटाकर 100 करनी है ताकि असली काम पर ध्यान हो सके।

अफ्रीकी देशों की गैर-मौजूदगी और ग्लोबल साउथ की चिंताएं

बॉन सम्मेलन में कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि शामिल नहीं हो पाएंगे क्योंकि उनके पास यात्रा का फंड ही नहीं है। इससे जलवायु फाइनेंस की असल स्थिति और ज़मीनी चुनौतियों की पोल खुलती है। LDC (कम विकसित देश) ग्रुप 13 जून को इस मुद्दे पर एक बयान देने वाला है।

भारत की भूमिका – सरल नहीं, लेकिन अहम

भारत की स्थिति जटिल है – एक तरफ ऊर्जा की ज़रूरतें और दूसरी तरफ ग्लोबल नेतृत्व की उम्मीदें। भारत ने अपने NDC में बड़े लक्ष्य लिए हैं और जलवायु फाइनेंस टैक्सोनॉमी का मसौदा भी पेश किया है। COP28 में भारत ने ट्रिपल रिन्यूएबल एनर्जी की बात आगे बढ़ाई थी, और G20 अध्यक्ष रहते हुए इस पर जोर दिया था। अब बोन में भारत से अपेक्षा है कि वह 2035 के लक्ष्यों को लेकर स्पष्टता दिखाए।

डिज़इन्फो पर हमला

21 जून को ब्राजील एक अहम इवेंट की मेज़बानी करेगा जिसमें जलवायु से जुड़ी गलत सूचनाओं और फेक न्यूज़ से लड़ने की वैश्विक अपील की जाएगी। इस “Global Information Integrity Initiative” में UNESCO और UN भी साथ हैं।

COP31 की लड़ाई – ऑस्ट्रेलिया बनाम तुर्किए

COP31 की मेज़बानी को लेकर भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। ऑस्ट्रेलिया दक्षिण प्रशांत देशों के साथ मिलकर अपनी छवि सुधारना चाहता है, जबकि तुर्किए खुद को ग्लोबल साउथ की आवाज़ बताकर इस दौड़ में बना रहना चाहता है। फैसला बॉन में हो सकता है।

नज़रे अब इस बात पर होंगी कि क्या बॉन सम्मेलन में सिर्फ चर्चा होगी या जलवायु कार्रवाई की दिशा में ठोस कदम भी तय किए जाएंगे।

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