पितृपक्ष: जानिए श्राद्ध में कौए, गाय, कुत्ते को क्यों दिया जाता है भोजन, क्यों बनाए जाते हैं चावल के पिंड और श्राद्ध में चावल की खीर ही क्यों बनाई जाती है?
पितृपक्ष: शनिवार से पितृपक्ष आरंभ हो गया है। 15 दिनों तक पितरों के लिए पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं। हिन्दू धर्म में श्राद्ध के दिनों में खासतौर पर कौए, गाय और कुत्ते को भोजन खिलाने, चावल के बने पिंड का दान करने आदि की परंपरा है। आपको बताते हैं कि श्राद्ध में इन सबका क्या महत्व है।
श्राद्ध में चावल की खीर का महत्व
पितृपक्ष में पके हुआ अन्न दान का विशेष महत्व रखता है। चावल को ‘हविष्य अन्न’ अर्थात देवताओं का अन्न माना जाता है। इसलिए चावल की ही खीर बनाई जाती है। धान यानी चावल ऐसा अनाज है, जो पुराना होने पर भी खराब नहीं होता। जितना पुराना होता है, उतना ही अच्छा माना जाता है। चावल के इसी गुण के कारण जन्म से मृत्यु तक के संस्कारों में इसे शामिल किया जाता है।
क्यों बनाए जाते हैं चावल, जौ और काले तिल से पिंड?
देवताओं और पितरों को चावल प्रिय है। इसलिए यह पहला भोग होता है। अगर चावल न हो तो जौ के आटे के पिंड बना सकते हैं। ये भी न हो तो काले तिल से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित कर सकते हैं। ये तीनों ही हवन में उपयोग होते हैं।
क्यों देते हैं श्राद्ध में गाय और कौए को भोजन?
सभी पितरों का वास पितृलोक और कुछ समय यमलोक भी रहता है। पितृ पक्ष में यम बलि और श्वान बलि देने का विधान है। यम बलि कौए को और श्वान बलि कुत्ते को भोजन के रूप में दी जाती है। कौए को यमराज का संदेश वाहक माना गया है। यमराज के पास दो श्वान यानी कुत्ते भी हैं। इन्हीं की वजह से कौए और कुत्तों को भोजन दिया जाता है। वहीं, गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इस वजह से गाय को भी भोजन दिया जाता है।
श्राद्ध करने के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ क्यों है?
मान्यता है पितृ पक्ष में दोपहर के समय किया गया श्राद्ध पितर देवता सूर्य के प्रकाश से ग्रहण करते हैं। दोपहर के समय सूर्य अपने पूरे प्रभाव में होता है। इस वजह से पितर अपना भोग अच्छी तरह ग्रहण कर पाते हैं। सूर्य को ही इस सृष्टि में एक मात्र प्रत्यक्ष देवता माना गया है जिसे हम देख और महसूस कर पाते हैं। सूर्य को अग्नि का स्रोत भी माना गया है। देवताओं के भोजन देने के लिए यज्ञ किए जाते हैं। वैसे ही पितरों को भोजन देने के लिए सूरज की किरणों को माध्यम माना गया है।
जानिए श्राद्ध के समय अनामिका उंगली में कुशा पहनने का महत्व?
कुशा को पवित्री कहा जाता है। कुशा एक विशेष प्रकार की घास है। सिर्फ श्राद्ध कर्म में ही नहीं, अन्य सभी कर्मकांड में भी कुशा को अनामिका में धारण किया जाता है। इसे पहनने से हम पूजन कर्म के लिए पवित्र हो जाते हैं। कुशा में एक गुण होता है, जो दूर्वा में भी होता है। ये दोनों ही अमरता वाली औषधि मानी गई हैं। ये शीतलता प्रदान करने वाली मानी गई हैं। यह मान्यता है कि अनामिका यानि रिंग फिंगर में कुशा बांधने से हम पितरों के लिए श्राद्ध करते समय शांत और सहज रह सकते हैं, क्योंकि ये हमारे शरीर से लगकर हमें शीतलता प्रदान करती है।