गोबर से बनी गणेश की मूर्तियां ही शास्त्र एवं व्यवहार सम्मत: डॉ राम भूषण बिजल्वाण
देहरादून।
यतोबुद्धिरज्ञाननाशोमुमुक्षोःयतःसम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।
ऋद्धि-सिद्धि और बुद्धि के दाता भगवान गजानन हमें सद्बुद्धि दें हमारी बुद्धि में जो क्रोध के कारण विकृति आ गयी है उसको दूर करें ।।
एसजीआरआर संस्कृत महाविद्यालय देहरादून के प्राचार्य डॉ राम भूषण बिजल्वाण ने बताया कि हमारे पावन पुनीत पर्वों में आज अज्ञानतावश कई प्रकार की विकृतियां देखने को मिल रही हैं। किसी भी पर्व का धार्मिक-शास्त्रीय पक्ष, व्यवहारिक आधार समझें बिना जो मन में आये कर रहे हैं। शिव पुराण में कथा आती है कि माँ पार्वती अपने मैल (मल) से भगवान गणेश को बनाती है और दुनियां अगर मल की पवित्रता की बात करें तो चौरासी लाख योनियों में सिर्फ गाय का ही मल इतना पवित्र और पावन है कि उससे भगवान बनाएं जा सकते हैं अर्थात भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई है।
वहीं शिवपुराण में एक प्रसंग है कि पार्वती गौ है शिवजी नन्दी है। शास्त्रों का साररूप यही है कि भारतीय नस्ल की गौमाता के गोबर से ही बनी भगवान गणेश की प्रतिमा शास्त्र सम्मत और व्यवहार सम्मत है। इसलिए गोबर का गणेश बलकर उनकी पूजा करें और अंत में उनका विसर्जन नहीं बल्कि अपने पूजा स्थान में रखें। पदम् पुराण में प्रसंग आता है ‘गोमये वसते लक्ष्मी गोमूत्रे जाह्नवी जलम्’ अर्थात गौ के गोबर में ही माँ लक्ष्मी का वास है ऋद्धि-सिद्धि है, इसलिए ऋद्धि-सिद्धि का कभी भी विसर्जन नहीं किया जाता। बल्कि, इसको सदैव घर में स्थापित किया जाता है। और अगर गोबर की प्रतिमा का विसर्जन भी करेंगे तो वह हमारी नदियों को प्रदूषित नही करेगी बल्कि जल शुद्ध होगा और पर्यावरण भी शुद्ध होगा। कैमिकल से बनी मूर्ति को स्थापित कर भगवान का अपमान न करें और न ही नदियों को दूषित करें अपनी श्रद्धा में विकृति न आने दें।