हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी सम्पर्क भाषा: शुक्ला

  • भारत के बाहर फिजी एक ऐसा देश जहां हिन्दी को प्राप्त है राजभाषा का दर्जा
  • हिन्दी जानने वालों की कुल संख्या 1300 मिलियन

देहरादून। हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी सम्पर्क भाषा है। वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत की बढ़ती उपस्थिति हिन्दी का उन्नयन कर रही है। हिन्दी राष्ट्रभाषा की गंगा से विश्व भाषा की गंगासागर बनने की प्रक्रिया में है। विश्व स्तर पर हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ रही है। हिन्दी आज 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा, 20 करोड़ लोगों के लिए दूसरी तथा 44 करोड़ लोगों के लिए तीसरी भाषा है, जबकि शेष लोग उसे विदेशी भाषा के रूप में प्रयुक्त कर रहे हैं। हिन्दी सहित्य सृजन की परम्परा भी बारह हजार सौ वर्ष पुरानी है। और 21वीं सदी तक गंगा की अनाहत-अविरल धारा की भांति प्रवाहमान है। यह बात हिन्दी साहित्य भारती के संस्थापक एवं केन्द्रीय अध्यक्ष तथा उत्तरप्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री रविन्द्र शुक्ला ने एक मुलाकात में कही।

उन्होंने डा0 जयन्ती प्रसाद नौटियाल के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि विश्व में हिन्दी जानने वालों की संख्या एक अरब 29 करोड़ 86 लाख 17 हजार 995 है, जो कि विश्व की सम्पूर्ण जनसंख्या का 18 प्रतिशत है। जबकि चीनी (मन्दारिन) बोलने वालों की संख्या मात्र नब्बे करोड़ चार लाख छह हजार छ सौ चैदह है। हिन्दी और मन्दारिन भारत तथा चीन की विशाल जनसंख्या के बल पर विश्व में अग्रणी भाषाएं है।

मन्दारिन चीन की मुख्य भूमि के अतिरिक्त ताईवान और सिंगापुर में भी प्रयुक्त होती है, जबकि हिन्दी का प्रसार अपेक्षाकृत अधिक देशों में है। वह दक्षेस के देशों, खाड़ी देशों, यूरोप एवं अमेरिका के अलावा उन देशों में बहुतायत से प्रयुक्त होती है जहाँ भारतीय श्रमिक ब्रिटिश शासन काल में विशेष अनुबन्ध के तहत गये थे। ऐसे देशों में माॅरिशस, फिजी, सूरीनाम, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैको की गणना की जाती है। भारत के बाहर फिजी एक ऐसा देश है जहां हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हिन्दी को फिजी सरकार ने संसद में प्रयोग करने की मान्यता दी है।

उन्होंने वर्ष 2015 के सामयिक सरस्वती में डा0 नौटियाल के शोध का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दी जानने वालों की कुल संख्या 1300 मिलियन और मन्दारिन बोलने वालों की कुल संख्या 1100 मिलियन है। हिन्दी का प्रसार मन्दारिन के मुकाबले दोगुनी गति से हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिन्दी को वैश्विक सन्दर्भ देने में उपग्रह-चैनलों, विज्ञापन एजेन्सियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। हिन्दी वैश्विक मीडिया की चहेती भाषाओं में से है। वह जनसंचार-माध्यमों की सबसे प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है।

आज विश्व में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के है। हिन्दी अब नई प्रौद्योगिकीय के रथ पर आरूढ़ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-काॅमर्स, ई-बुक, इन्टरनेट, एसएमएस एवं वेब जगत में बड़ी सहजता से देखा जा सकता है। वह सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक परिवर्तन को साकार कर रही है। इन्टरनेस जैसे वैश्विकम माध्यम के कारण हिन्दी के समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं दूसरे देशों में विविध वेबसाइट पर उपलब्ध है। ई पेपर और ई पत्रिकाओं ने हिन्दी पाठकों का विश्वव्यापी वर्ग है।

उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए बौद्धिक आत्मनिर्भर आवश्यक है, इसके लिए एक व्यापक बौद्धिक आन्दोलन जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस आन्दोलन के लिए बौद्धिक वातावरण अनुकूल करना पड़ेगा। यह आन्दोलन के माध्यम से हिन्दी साहित्य भारती नई पीढ़ी अन्दर भारत की चेतना के प्रति अनुराग पैदा करके सकारात्मक वातावरण तैयार कर रही है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी भारत की है और हिन्दी साहित्य भारती व्यापक सम्पर्क के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन के माध्यम से बौद्धिक वातावरण तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि हिन्दी के प्रति भारतीय चेतना जुड़ी है और इस चेतना के जागरण के लिए अधिक से अधिक लोगों से सम्पर्क की आवश्यकता है। तभी भारत 21वीं सदी का भारत कहलायेगा।

उन्होंने बताया कि अगले तीन माह पूरे देश के सभी प्रदेश में कार्यकारिणी बैठकों एवं आत्मनिर्भर भारत के लिए बौद्धिक आत्मनिर्भर की विषय पर संगोष्ठियां आयोजित की जायेगी। इस अवसर पर हिन्दी साहित्य भारती के केन्द्रीय मार्गदर्शक निरंजनी अखाड़े के महामण्डलेश्वर डा0 शाश्वतानन्द गिरी महाराज, केन्द्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डा0 बुद्धिनाथ मिश्र तथा केन्द्रीय मंत्री डा0 अनिल शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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