षड़-ऐश्वर्य को प्रदान करने वाला है अधिकमास : डॉ रामभूषण बिजल्वाण
डॉ राम भूषण बिजल्वाण
देहरादून। आज से पुरुषोत्तम मास प्रारम्भ हो गया है. जानते हैं कि क्यों और कैसे बनता है अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में मास (महीनों) की गणना दो प्रकार से बताई गई है. एक सौरमास और दूसरा चान्द्रमास। सौरमास सूर्य एक राशि में लगभग 30 दिन या 31 दिन रहता है, उसे सौरमास कहते हैं. और जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, उसे सूर्य संक्रांति कहा जाता है।
दूसरा चंद्रमास अर्थात कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष एक पूर्णिमा और एक अमावस्या को मिलाकर बनता है जिसे चान्द्रमास कहा जाता है। अब मलमास या अधिक मास कैसे होता है यह विचारणीय है। जब एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कोई सूर्यसंक्रांति नहीं पड़ती है तब वह समय पुरुषोत्तम मास, अधिकमास या मलमास कहलाता है। ‘असंक्रान्ति मासः अधिकमासः भवति। यह मास तीन वर्ष में एक बार आता है। सौरमान और चांद्रमान में एक वर्ष में 10 दिन 21घण्टा और 9 मिनट के लगभग ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अंतर बताया गया है जो तीनवर्ष में एक अतिरिक्त मास बन जाता है जिसे अधिकमास या मलमास कहा गया है।
पद्मपुराण के प्रसंगानुसार यह अधिकमास जब भगवान विष्णु की शरण में गया कि भगवान लोग मुझे सौर और चांद्रमास का अतिरिक्त अर्थात छूटा हुआ मलमास कहते हैं। तब भगवान ने इस मास को अपनी शरण में लिया और वरदान दिया कि आज के बाद तुम पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे. भगवान ने आगे कहा कि इस माह में जो भी भक्त श्रद्धा से जप-तप-व्रत-उपवास-स्नान-दान-कथा श्रवण-शिवार्चन तथा किसी जटिल जरा-व्यधि की निवृत्ति के लिए किया जाने वाला यज्ञानुष्ठान करेगा उसे अनन्त गुणा फल प्रॉप्त होगा।
नारदीय पुराण में एक और प्रसंग आता है कि मलमास में सभी ऋषि मुनि भगवान की कथा श्रवण हेतु भगवान बद्रीविशाल धाम में पहुंचकर स्वयं बद्रीनारायण भगवान के श्रीमुख से कथा श्रवण कर पुण्यलाभ अर्जित करते हैं। अर्थात कह सकते हैं कि इस मास में किये जाने वाले सत्कर्म अक्षयपुण्य लाभ देने वाले हैं। षड़ ऐश्वर्य अर्थात छ् प्रकार के ऐश्वर्य को प्रदान करने वाला है अधिकमास। मलमास अर्थात अधिकमास में केवल ग्रह प्रवेश-यज्ञोपवीत संस्कार-मुंडन संस्कार-विवाह आदि मांगलिक कर्म निषिद्ध हैं।
(लेखक गुरु राम राय संस्कृत महाविद्यालय देहरादून में प्राचार्य हैं।)