शासन के फरमान से आक्रोशित संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक कर्मचारियों ने बनाया संयुक्त मोर्चा

संयुक्त मोर्चा ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और संस्कृत शिक्षा मंत्री को भेजा 6 सूत्री मांग पत्र

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृत के अस्तित्व को बचाने के लिए आज प्रदेश के संस्कृत विद्यालय महाविद्यालयों में व्याप्त विभिन्न संगठनों ने आज एक मंच पर आकर संयुक्त मोर्चा गठित कर दिया है। डॉ. रामभूषण बिजल्वाण को संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालय शिक्षक कर्मचारी संयुक्त मोर्चा उत्तराखंड का प्रांतीय अध्यक्ष जबकि डॉ.नवीन पंत प्रांतीय महासचिव बने। मोर्चा ने देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और संस्कृत शिक्षा मंत्री को छ: सूत्रीय मांग पत्र भी भेजा।

प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. रामभूषण बिजल्वाण ने  कहा कि आज संस्कृत जगत नतमस्तक होकर करबद्ध प्रार्थनीय है कि संस्कृत शिक्षा के उत्थान हेतु अधोलिखित समस्याओं का त्वरित निराकरण किया जाए, ताकि प्रदेश में द्वितीय राजभाषा संस्कृत की संकल्पना को सार्थक बनाए रखा जा सके। मोर्चा ने कहा कि मांगों पर स्थिति स्पष्ट न होने पर संयुक्त मोर्चा किसी भी ऐसे कदम उठाने के लिए बाध्य होगा जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन और सरकार की होगी।

प्रमुख मांगें
  • शासन से निर्गत 16 एवं 23 अक्टूबर के आदेश को स्थगित करते हुए दिनांक-17 फरबरी 2021 को 31 वर्गीकृत महाविद्यालयों के इतर शेष सभी संस्कृत विद्यालयों को पूर्व की भांति इंटरमीडिएट स्तर के वित्तीय मान्यता तथा सेवालाभ तत्काल प्रदान किये जाय।
  • 31 संस्कृत महाविद्यालय में से 18 महाविद्यालयों में संस्कृत विश्वविद्यालय परिनियमावली 2007,09,11 की धारा-7.4 में उध्दृत उच्चशिक्षा की अर्हता पर विभागीय अनुज्ञा/विज्ञापन/अनुमोदन (सीधी भर्ती ) से स्थायी नियुक्त 38 शिक्षकों को उच्चशिक्षा के सेवालाभ सम्बन्धी प्रकरण पर 13 मई 2022 को वित्त से वैट हुए शासनादेश को तत्काल निर्गत किया जाय तथा वर्गीकरण के उपरांत केवल महाविद्यालय स्तर पर स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहे महाविद्यालयों के लिए पृथक आदेश जारी हो। तथा वर्गीकृत संस्कृत महाविद्यालयों के लिये पृथक नियमावली तत्काल बनाई जाए।
  •  प्रदेश के संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों में कार्यरत मानदेय प्राप्त 155 शिक्षकों का उनकी योग्यतानुरूप विद्यालय-महाविद्यालयों में तत्काल समायोजन हो तथा मानदेय सूची से वंचित 126 प्रबंधकीय शिक्षकों को तत्काल मानदेय दिया जाए।
  • प्रत्येक शासकीय अशासकीय विभाग में संस्कृत अनुवादक के पदों का सृजन हो।
  • प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में तत्काल पाठ्यक्रमानुसार पढ़ाये जा रहे विषयों के अनुरूप पदों का सृजन हो साथ ही प्रत्येक विद्यालय-महाविद्यालय को कमसेकम एक लिपिक-परिचारक-स्वच्छक के पद सृजित हों।
  • उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी द्वारा 2008 से मिलने वाले शिक्षक अनुदान पुनः शुरू किया जाय व इसको केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की भांति दिया जाय तथा उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशालय को आवंटित भूमि कब्जामुक्त हो व उसपर शीघ्र भवन निर्माण हो।

Leave A Reply

Your email address will not be published.