सुरकुट पर्वत : जहां गिरा था माता सती का सिर

अभिज्ञान समाचार/प्रीती नेगी।

देवभूमि में अनादिकाल से नारी शक्ति की पूजा की परंपरा रही है और नारी का सम्मान उत्तराखण्ड की सर्वोच्च परंपरा है। देवभूमि  पर्यटन स्थल के साथ ही आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र के साथ ही यहां अनगिनत धार्मिक स्थल विराजमान हैं जो सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था के केंद्र हैं । इन्ही में से एक है, जनपद नई टिहरी के जौनपुर ब्लाक के सुरकुट पर्वत पर घने जंगलों के बीच समुद्रतल से तकरीबन तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर  सुरकंडा देवी का मंदिर। जहां माता रानी विराजमान हैं।

यह मंदिर माता  दुर्गा के नौ रुपों को समर्पित है और 51 शक्ति पीठों में से एक है। मंदिर में मां काली की प्रतिमा विराजमान है।  पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। शिव के मना करने के बावजूद माता सती यज्ञ में शामिल होने  चली गईं। वहां राजा दक्ष ने शिव का मेहमानों के सामने अपमान किया तो सती शिव का अपमान सह नहीं  पाई और यज्ञ कुंड में कूद गईं। भगवान शिव ने माता सती का शव कुंड से निकाल त्रिशूल में टांगकर आकाश में  वियोग मेंं भटकने  लगे। शिव के दुख के चलते सृष्टि में ठहराव  आ गया। शिव की व्यथा को देखकर भगवान विष्णु ने चक्र से माता के  शरीर को 51 टुकड़ों में खंडित कर दिया। चक्र से शरीर खण्डित होने के बाद माता सती का सिर कटकर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से ये स्थान सुरकंडा देवी के रूप में प्रसिद्ध हुआ। केदारखण्ड  व स्कंद पुराण के अनुसार  जब राजा इंद्र का राजपाट छीन गया  तो उन्होंने सुरकुट पर्वत पर माता जगदम्बा की आराधना की और उनके आशीर्वाद से खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था।

प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार  चंबा जड़धार गाँव के युवक को माता ने बूढ़ी महिला के रूप में यहां साक्षात दर्शन दिए थे। कहा जाता है कि एक बार एक बूढ़ी औरत सुरकुंडा की ओर जा रही थीं । थकान होने पर उसने राहगीरों से सुरकुट पर्वत तक पहुंचाने के लिय मदद मांगी, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की,वह एक युवक के पास पहुँची और उसने युवक से सुरकुट पर्वत तक पहुंचाने के लिए मदद मांगी। युवक ने तुरन्त वृद्धा को कंडी में बैठाकर सुरकूट पर्वत तक पहुंचाया। इसके बाद बूढ़ी औरत ने युवक को साक्षात देवी रूप में प्रकट होकर उसे दर्शन दिए। सुरकंडा देवी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष माना जाता है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता है। यहां से उत्तर में बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं और दक्षिण में देहरादून,  हरिद्वार का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। यह  एक मात्र ऐसा मन्दिर है, जहां से चार धामों की पर्वत श्रृंखलायें दिखाई देती हैं, जो कि अपने आप  मेंं अदभुत है।

 

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