सुरंग में फंसे मजदूरों के परिवार वालों का छलका दर्द

उत्तरकाशी । उत्तराखंड में उत्तराकाशी के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर की सुबह ढह गया था जिससे उसके अंदर 41 श्रमिक फंस गए थे। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, सुरंग के बाहर श्रमिकों का इंतजार कर रहे उनके परिजनों में निराशा बढ़ती जा रही है।

मलबे को भेद उसमें स्टील पाइप डालकर रास्ता बनाए जाने के लिए लाई गयी शक्तिशाली अमेरिकी ऑगर मशीन में कुछ खराबी आने के कारण शुक्रवार दोपहर से रूके पड़े बचाव अभियान के बाद श्रमिकों के परिजनों की बेचैनी बढ़ने लगी है। देश विदेश के विशेषज्ञों और आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करने के बावजूद मजदूरों को बाहर नहीं निकाला जा सका है।

हालांकि सरकार मजूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इस बीच मजदूरों के बाहर आने का इंतजार रहे हैं उनके परिवारवालों का कहना है कि अब मजदूरों की हिम्मत जवाब देती नजर आ रही है। परिवार वालों ने शनिवार को मजदूरों से बात करने के बाद कहा कि उनकी आवाज कमजोर होती जा रही है और उनकी ताकत कम होती लग रही है।

बढ़ रही परिवारवालों की घबराहट: सुरंग में फंसे श्रमिकों में से एक सुशील के बड़े भाई हरिद्वार शर्मा ने बताया कि बाहर आने के इंतजार में किसी तरह समय काट रहे सुरंग में बंद लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है और उनके परिवारों में घबराहट बढ़ती जा रही है। बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले शर्मा ने सरकार बचाव कार्य में लगे लोगों को कटघड़े में खड़ा करते हुए बताया, हमें अधिकारियों से बस आश्वासन मिल रहा है कि फंसे श्रमिकों को बाहर निकाल लिया जाएगा। अब करीब एक सप्ताह हो चुका है। आंखों में आंसू लिए शर्मा ने कहा, सुरंग के अंदर कोई काम नहीं चल रहा है।

‘कमजोर हो रही मजदूरों की आवाज’: सिलक्यारा सुरंग के बाहर प्रतीक्षारत लोगों में उत्तराखंड के कोटद्वार के गब्बर सिंह नेगी का परिवार भी है । उनके दो भाई-महाराज सिंह और प्रेम सिंह और पुत्र आकाश सिंह घटना की सूचना मिलने के बाद से मौके पर हैं और किसी अच्छी खबर पाने के लिए बेचैन है। महाराज सिंह ने कहा कि उन्होंने आक्सीजन की आपूर्ति वाले पाइप के जरिए गब्बर सिंह से बात की थी और उनकी आवाज काफी कमजोर लग रही थी।

उन्होंने कहा, मैं अपने भाई से बात नहीं कर पाया। उसकी आवाज बहुत कमजोर लग रही थी। वह सुनाई ही नहीं दे रही थी। सुरंग में बचाव कार्य रूक गया है। फंसे हुए लोगों के पास खाने और पानी की भी कमी है। हमारा धैर्य जवाब दे गया है। उनके भाई प्रेम ने कहा कि फंसे हुए लोग अब उम्मीद खोने लगे हैं। उन्होंने कहा, फंसे हुए लोगों को खाने के लिए चना, खीर और बादाम जैसी हल्की चीजें दी जा रही हैं। इन चीजों से कब तक चलेगा।

गब्बर के पुत्र आकाश ने नाराजगी जताते हुए कहा, भारत डिजिटल हो गया है। वे भारत के चंद्रयान मिशन की सफलता की बात करते हैं, लेकिन अपने फंसे हुए लोगों को एक सप्ताह में बाहर नहीं निकाल पाए। उन्होंने कहा कि सुरंग में कोई काम नहीं चल रहा है और अंदर कोई इंजीनियर भी नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल पाइप के जरिए खाना और पानी भेजने वाले लोग सुरंग में आ-जा रहे हैं।
परिवारालों की नाराजगी के बीच मजदूरों को निकालने के लिए सरकार हर संभव कोशिश करती नजर आ रही है। पीएमओ की भी इस पर सीधी नजर बनी हुई है। फिलहाल प्लान बी के मुताबिक रेस्क्यू ऑपरेशन जारी रहेगा. इसके तहत टनल में ड्रिल करके पाइप डाला जाएगा. वहीं प्लान सी पर भी विचार किया जा रहा है।

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