उत्तराखंड के लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेनि) बने नए सीडीएस, जानें इनके बारे में…
उत्तराखंड को देवभूमि के साथ ही वीरभूमि भी कहा जाता है। वीरो की भूमि ने देश को नया सीडीएस दिया है। पौड़ी गढ़वाल के निवासी लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेनि) सीडीएस बन गए हैं। उनके सीडीएस बनने से प्रदेश का मान बढ़ गया है। तो वहीं वीरभूमि के नाम देश को दो सीडीएस देने का किर्तिमान भी दर्ज हो गया है। आइए आपको बताते है लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेनि) का उत्तराखंड और दून से क्या कनेक्शन है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बीते दिन लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (रि.) को देश के दूसरे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में नियुक्ति मिली है। खास बात यह है कि देश के पहले सीडीएस स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत भी उत्तराखंड से थे। सशस्त्र सेनाओं के सबसे बड़े पद पर अब एक के बाद एक, दो उत्तराखंडी पहुंच चुके हैं। दोनों ही पौड़ी जिले से आते है। जिससे पौड़ी और पूरा प्रदेश गौरवान्वित हुआ है।
बता दें कि नवनियुक्त सीडीएस मूलरूप से पौड़ी जिले के खिर्सू ब्लाक के ग्रामसभा रामपुर कांडा गंवाणा निवासी हैं। वर्तमान में उनका परिवार दिल्ली में रहता है। पांच वर्ष पूर्व ले. जनरल अनिल चौहान (सेनि) परिवार सहित गांव आए थे। वह यहां नृसिंह देवता की पूजा में शामिल हुए थे। उनका एक घर देहरादून में भी है। बताया जा रहा है कि दून के वसंत विहार में उनका पुश्तैनी मकान है। जहां पर उनके पिताजी रहते हैं। जहां इन दिनों नवीनीकरण कार्य चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सीडीएस चौहान न केवल रणनीतिक रूप से माहिर माने जाते हैं बल्कि कई बड़े अभियानों की अगुवाई भी कर चुके हैं। जंग के मैदान में उन्हें दुश्मनों को निपटाने का हुनर आता है। ‘ऑपरेशन बालाकोट’ में सीडीएस चौहान की बड़ी भूमिका रही थी। इन तमाम उपलब्धियों के बीच चौहान को मुखौटे जमा करने का नायाब शौक है। लगभग 40 वर्षों से अधिक के अपने करियर में लेफ्टिनेंट जनरल (रि) अनिल चौहान ने कई कमांड, स्टाफ और सहायक नियुक्तियां की हैं।
गौरतलब है कि जनवरी 2020 में थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को देश के पहली सीडीएस नियुक्त किया गया था। मगर विगत वर्ष दिसंबर में हेलीकॉप्टर हादसे में उनका निधन हो गया था। उनके निधन के बाद अब देश को नए सीडीएस मिले हैं। उम्मीद है कि सीडीएस बिपिन रावत के कामों को वह पूरा करेंगे। बताया जा रहा है कि नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार सेवारत और सेवानिवृत्त, दोनों तरह के सैन्य अधिकारियों के नाम पर विचार कर रही थी।