नई दिल्ली। सरकारी नौकरी में एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच में तमाम पक्षकारों की ओर से दलील पेश की गई। इस दौरान राज्य सरकारों की ओर से पक्ष रखा गया जबकि केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने दलील पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। मंगलवार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह उस फैसले को दोबारा नहीं ओपन करेगा जिसमें कहा गया है कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन दिया जाएगा, ये राज्य को तय करना है कि इसे कैसे लागू किया जाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने कई राज्यों की ओर से यह कहा गया है कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने में कुछ बाधाएं हैं जिन्हें देखने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा था कि वह इस बात को साफ करना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का नागराज और जरनैल सिंह से संबंधित वाद में दिए गए फैसले में वह दोबारा नहीं जाना चाहते। उन फैसलों को दोबारा ओपन करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जो कानूनी व्यवस्था दी है उसी के तहत ही केस तय होगा। 2006 के नागराज जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सीलिंग लिमिट 50 फीसदी, क्रीमीलेयर के सिद्धांत को लागू करने, पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए डेटा एकत्र करने और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में देखना होगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच के सामने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जो लोग एससी व एसटी कैटगरी के है उन्हें ग्रुप ए कैटगरी की नौकरी में उच्च पद पाना काफी मुश्किल है और ऐसे में समय आ गया है कि शीर्ष अदालत कुछ ठोस आधार तय करे जिससे कि एससी, एसटी और ओबीसी कैटगरी के लोगों से वैकैंसी भरी जा सके।